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Murho Estate: मधेपुरा के अहीर ज़मींदारों का इतिहास

मुरहो इस्टेट (English: Murho Estate) बिहार के तत्कालीन भागलपुर जिले (अब मधेपुरा जिले में) में अहीर जाति की एक बड़ी जागीर या जमींदारी थी। मुरहो इस्टेट कई परगनो के दर्जनों मौजे (राजस्व ग्राम) में फैली हुई थी। मुरहो के मंडल कोसी क्षेत्र के सबसे बड़े एवं प्रभावशाली जमींदार थे, जिन्होंने क्षेत्र का विकास एवं देश निर्माण में कई बड़े योगदान दिए है।

मुरहो ग्राम में जमींदारी का केंद्र होने के वजह से ब्रिटिश काल में ‘मुरहो इस्टेट’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पूर्वी भारत एवं नेपाल में अहीरों की पहली जातीय संगठन ‘गोप जातीय महासभा’ के संस्थापक, बिहार में कांग्रेस के संस्थापक सदस्य एवं स्वतंत्रता सेनानी बाबू रास बिहारी लाल मंडल मुरहो के ही जमींदार थे। बिहार के प्रथम यादव मुख्यमंत्री बाबू बीपी मंडल भी इसी जमींदार परिवार के थे।

उत्पत्ति एवं इतिहास :

मुरहो इस्टेट का स्थापना का श्रेय सर्वश्री बाबू पंचानन मंडल को जाता है। अहीर-मंडल परिवार के वंशावलियों के अनुसार 18वीं सदी के मध्य में बाबू पंचानन मंडल ने मधेपुरा परगना में जागीर की स्थापना की थी एवं मुरहो ग्राम में एक ड्योढ़ी का निर्माण करा उसे अपना निवास स्थान बनाया। तत्कालीन तिरहुत एवं मुंगेर सरकार द्वारा इन्हें ‘मधेपुरा का जमींदार’ माना गया था। मंडल परिवार के दूसरे सदस्य जो बाबू पंचानन मंडल के समकालीन थे उन्हें भी कुछ गांवों में जमींदारी प्राप्त हुई, जैसे बाबू चानन मंडल जी को चामगढ़ में एवं बाबू मानव मंडल जी को बेलोकला में जमींदारी प्राप्त हुई। ये दोनों भी मधेपुरा के जमींदार बाबू पंचानन मंडल के अधीन ही थे।

सर्वश्री बाबू पंचानन मंडल के दो पुत्र हुए, जिनमें ज्येष्ठ पुत्र पराव मंडल उनके उत्तराधिकारी बने और बाद में जागीर की बागडोर संभाली। बाबू पराव मंडल के पांच पुत्र हुए इंद्रजीत मंडल, मित्रजीत मंडल, रामधन मंडल, गुरदयाल मंडल एवं रामदयाल मंडल। इनमें से कुमार साहब गुरदयाल मंडल ने जागीर के उत्तराधिकारी के रूप में कमान संभाली।

बाबू गुरदयाल मंडल एक शक्तिशाली जमींदार के रूप में उभरे। उन्होंने अपने समय में छोटी-बड़ी जमींदारियों को खरीदकर अपने जागीर का विस्तार किया। इसी क्रम में उन्होंने मोहो सिंह नामक एक राजपूत की 14 हजार एकड़ की जमींदारी खरीदी थी, जो मधेपुरा और उसके आसपास के कोसी क्षेत्र के कई गांवों में फैला हुआ था।

बाबू गुरदयाल मंडल की बस दो पुत्री थी, जिस वजह से मुरहो इस्टेट के उत्तराधिकारी इनके छोटे भाई कुमार साहेब रामदयाल मंडल के ज्येष्ठ पुत्र रघुवर दयाल हुए। इनके दौर में ही 1857 का महासंग्राम शुरू हुआ था। बिहार के ज़्यादातर राजा एवं ज़मींदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया। जिन ज़मींदारों ने विद्रोह किया उन्हें पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया एवं उनकी जमींदारियों को नीलाम कर दी गयी। बाबू रघुवरदयाल ने अंग्रेजों का साथ नही दिया था जिस वजह से अंग्रेजी अधिकारियों ने उन्हें बुरे ज़मींदारों की सूची में शामिल कर लिया एवं इनके जमींदारी की कामकाज में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। बहुत ही कम उम्र में बाबू रघुवरदयाल का निधन हो गया,  इनके एकमात्र पुत्र रास बिहारी लाल मंडल तब काफी छोटे उम्र के थे।

वर्ष 1882 में 16 वर्ष की उम्र में सर्वश्री बाबू रास बिहारी लाल मंडल ने जमींदारी का कामकाज परिवार के बड़े सदस्यों की निगरानी में देखना शुरू कर दिया। साहित्यकार डॉ. भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी के अनुसार रासबिहारी बाबू हिन्दी, उर्दू, फारसी, बांग्ला, अंग्रेजी, फ्रेंच और संस्कृत आदि कई भाषाओं के विद्वान थे। आगे चलकर मुरहो इस्टेट के सबसे मशहूर जमींदार हुए बाबू रास बिहारीलाल। रास बिहारी लाल मंडल बिहार में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और वे 1908 से 1918 तक बिहार प्रांतीय कांग्रेस समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के निर्वाचित सदस्य रहे थे। वे 1910 में इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 25वें अधिवेशन में बिहार के प्रतिनिधियों में से एक थे। रासबिहारी लाल बिहार के उन चंद ज़मींदारों में से एक थे जिन्होंने अंग्रेजों पर हमला किया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ कई आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण अंग्रेजों ने उनके खिलाफ़ 120 से अधिक मामले दर्ज किए। ब्रिटिश विरोधी होने के बावजूद 1911 में भारत में सम्राट जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के अवसर पर दिल्ली दरबार में रास बिहारी लाल मंडल को प्रतिष्ठित स्थान दिया गया।

इनके तीन पुत्र हुए भुबनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल एवं बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल। 26 अगस्त 1918 को वाराणसी में बाबू रास बिहारी लाल मंडल जी का बीमारी से मृत्यु हो गया।

बाबू भुबनेश्वरी प्रसाद मंडल ने पिता के मृत्यु के बाद ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते 1919 से 1947 में आज़ादी तक जमींदारी की कमान संभाली। भुबनेश्वरी बाबू बिहार की राजनीति में भी सक्रिय थे। 1924 में बिहार उड़ीसा विधान परिषद में चुने गए तथा अपने मृत्यु 1948 तक भागलपुर लोकल बोर्ड के चेयरमैन थे।  बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल की मृत्यु मधेपुरा स्थित अपने आवास “भुवनेश्वरी हवेली” पर 15 दिसंबर 1948 को हुई। इनके भाई बाबू कमलेश्वरी प्रसाद भी विधानपरिषद के सदस्य रहे थे, उनकी 1939 में मृत्यु हो गई। 1942 में तीसरे भाई बाबू बीपी मंडल सक्रिय राजनीति में आये। जिसके बाद वो विधायक, सांसद बने और फिर मुख्यमंत्री।

जमींदारी उन्मूलन

1947 में भारत की आज़ादी के बाद जमींदारी प्रथा समाप्त हो गई हालांकि मुरहो परिवार का रूतबा आज़ादी के 70 साल बाद भी कायम है। बिहार के कई स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता इस खानदान से ताल्लुक रखते हैं।

लोक निर्माण कार्य

बाबू रासबिहारी लाल मंडल ने मधेपुरा में अनुमंडल मुख्यालय और डाकघर के निर्माण के लिए उदारतापूर्वक दर्जनों एकड़ भूमि दान किया।

1948 में बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल ने मधेपुरा के बीचों बीच 5 बीघा जमीन दान कर एक स्कूल का निर्माण करवाया जिसे ‘रास बिहारी उच्च विद्यालय’ के नाम से जाना जाता है। 1963 में एकबार फिर मजबखरा मौजा में 25 बीघा जमीन विद्यालय के लिए स्व. बाबू रमेश चंद्र यादव ने दान दिया।

बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल की पत्नी मंडलायन सुमित्रा देवी ने मधेपुरा में शिव मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसे अब पालकेश्वरनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है तथा देख रेख के लिए मजपखरा (पडडिया) में 10 एकड़ जमीन दान की थी। बाद में मधेपुरा टाउन के लोगों के सहयोग से मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।

ज़मींदारों की सूची

  • बाबू पंचानन मंडल
  • बाबू पारव मंडल
  • बाबू गुरदयाल मंडल
  • बाबू रघुवर दयाल मंडल
  • बाबू रास बिहारी लाल मंडल
  • बाबू भुनेश्वरी प्रसाद मंडल

उल्लेखनीय वंशज

  • बाबू बीपी मंडल (1918-1982), पूर्व मुख्यमंत्री (बिहार) एवं मंडल कमीशन के अध्यक्ष
  • न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल, जज (पटना हाइकोर्ट)
  • बाबू मनिन्द्र कुमार मंडल, पूर्व विधायक
  • बाबू सुरेश चंद्र यादव, पूर्व विधायक
  • जस्टिस केके मंडल, जज (पटना हाइकोर्ट)

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