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पार्टियों की मान्यता पर अटकी सुप्रीम कोर्ट की तलवार

नवी घोषणा पत्र की वादी पूरा नहीं करने वाली राजनीतिक पार्टियों के सिंबल फॉर मान्यता रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है अर्जी में कहा गया है कि राजनीतिक पार्टियों को उनके चुनावी घोषणा पत्र के वादे के प्रति जवाबदेह बनाया जाए इसके साथ ही केंद्र सरकार चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह राजनीतिक दलों को चुनावी घोषणापत्र के प्रति जवाबदेही तय करें जो भी राजनीतिक पार्टी अपने चुनावी घोषणापत्र के बाद ही पूरा नहीं करती उनकी मान्यता रद्द कर दिया जाए उनके चुनावी सिंपल सीज कर दिए जाएं सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण पीआईएल दाखिल की गई है इसमें मांग की गई है कि पार्टियां चुनाव के समय जो घोषणा पत्र जारी करती है उसके लिए हमें जवाब दे बनाया जाए साथ ही वादे पूरे न कर पाने पर उनकी मान्यता रद्द कर दी जाए ।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अपनी संडे या एक गंभीर मुद्दा है हम जानना चाहते हैं कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए मुक्त बजट नियमित बजट से परे है भले ही आप भ्रष्ट पता नहीं है लेकिन कभी-कभी जैसा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा देखा गया है या कुछ पार्टियों के लिए समान अवसर नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिककर्ता ने पीआईएल दाखिल करते हुए गुहार लगाई और कहा कि राजनीतिक पार्टियां न सिर्फ चुनावी घोषणा पत्र में वादे का जिक्र करे बल्कि उसे पूरा करने के लिए टाइम लाइन भी घोषित करे , राजनीतिक पार्टियां करप्शन और संप्रदायिकता रोकने के लिए सिर्फ कदम उठाने की बात ना करें बल्कि वह लोगो के मौलिक अधिकार का हनन रोकने के लिए किए जाने वाले प्रयास के बारे में बताएं । वे स्वास्थ्य का अधिकार शिक्षा का अधिकार शेल्टर का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार ,रोजगार के अधिकार, सबको न्याय पाने का अधिकार और स्वच्छ वातावरण तथा पर्यावरण अधिकार के बारे में जिक्र करें जिसके लिए वह जरूरी कदम उठाएगी ।

याचिकाकर्ता ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां अगर चुनाव जीतती है तो उसके लिए चुनावी घोषणा-पत्र एक विजन डॉक्यूमेंट होते हैं याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि चुनावी घोषणा पत्र के वादे सिर्फ वादे बनकर रह जाते है और चुनावों में सिर्फ मुफ्त उपहार बाँटने का वादा पूरा होता है ,बाकी चुनावी घोषणा पत्र के वादे धरे के धरे रह जाते है ज्यादतर को ईमानदारी से लागू नहीं किया जाता है।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि चुनावी घोषणा पत्र राजनीतिक पार्टियों का विजन डॉक्यूमेंट घोषित करने का निर्देश दिया जाए क्योंकि पार्टियां एक उद्देश्य के लिए घोषणा पत्र में वादे करती है ऐसे में कानूनी तौर पर उसे लागू कराया जाए, वह राजनीतिक पार्टियों को चुनावी घोषणा पत्र के वादे के प्रति जवाबदेह बनाया जाए तथा कोर्ट से अपील की कि अगर वादे पूरे नहीं करती है तो राजनीतिक पार्टियों के सिंबल और मान्यता पर चुनाव आयोग रद्द करें इस बात का भी निर्देश जारी किया जाए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 25 जनवरी को केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भी जारी कर चुकी है यह नोटिस एक याचिका से जुड़ा है जिसमें चुनाव से पहले पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार बांटने के खिलाफ कार्यवाही की मांग की गई है इसके लिए केंद्र व निर्वाचन आयोग से 4 हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा गया है,

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आम आदमी पार्टी ने 2013,2015,2020 के चुनाव में जनलोकपाल बिल का वादा किया था लेकिन अब तक लागू नहीं किया गया उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने चुनाव को नियमित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया है और ना ही इसके लिए चुनाव आयोग को निर्देश दिए गए हैं।

इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि चुनावी वादें पूरे नही होते है तो पार्टी का सिंबल व उनकी मान्यता रद्द कर दी जायेगी।

Annie Sharma

Writer, Social blogger, data analyst (worked under NGO related to niti aayog for 3years &self ) She is Content Writer in entertainment, Tech & Gadgets, sport and politics.

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