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सफेद बर्फ से लिपटे पहाड़ों के सफ़र में प्यार का गर्म एहसास हैं सुमेरु   

रेटिंग * * * १/३ स्टार
अवधि :  1 घंटे ५८ मिनट
बैनर : पदमा सिद्धि फ़िल्म 
कलाकार : अविनाश ध्यानी , अभिनेत्री संस्कृति भट्ट और अभिनेत्री शगुफ्ता अली निर्देशक : अविनाश ध्यानी निर्माता : अविनाश ध्यानी और रवीन्द्र भट्ट 

इस शुक्रवार को सिनेमागृह में हिंदी फ़िल्म सुमेरु रिलीज़ हुयी हैं आइए जानते हैं कैसी हैं यह फ़िल्म ।
फ़िल्म की कहानी शुरू होती हैं उत्तराखंड में खूबसूरत शहर  हर्षिल में घूमने आए रोशनी और नमन  की जो पहाड़ों में भटक गए हैं रात को उन्हें एक घर दिखाई देता हैं जिसका दरवाजे पर ताला लगा हैं लेकिन  आस पास खोजने पर नमन को चाभी मिल जाती हैं क्योंकि पहाड़ में रहने वाले अपने अक्सर ऐसा ही करते हैं सुबह होने पर रोशनी देखती हैं की बाहर सावी मल्होत्रा जिसके घर पर वह दोनो रात में ठहरे थे सावी मल्होत्रा की हरियाणवी बोली सुनकर रोशनी उससे पूछती है कि वह यहाँ पहाड़ों में कैसे पहुँची । फिर सावी मल्होत्रा ( संस्कृति भट्ट )  अपने और भँवर प्रताप सिंह ( अविनाश ध्यानी ) की प्रेम कहानी के बारे में बताती हैं । 
सावी अपने होने वाले पति के साथ हर्षिल में डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए आयी थी लेकिन अपने मंगेतर के साथ बार बार झगड़े होने के कारण एक दिन वह अकेले जंगल में चली जाती हैं शाम होते होते वह जंगल में से बाहर निकलने का रास्ता भूल जाती हैं बढ़ते अंधेरे और डरावने माहौल में वह भँवर प्रताप से मिलती हैं । भँवर सालो पहले अपने पहाड़ों में खो गए अपने पिता को खोजने के लिए सुमेरु पहाड़ तक जाना हैं और सावी उसके इस सफ़र में हमसफ़र बन जाती हैं  मासूम प्रेम कहानी धीरे धीरे आपको सफेद बर्फ के अंदर प्यार की गर्माहट में ले जाती हैं 

फ़िल्म के लेखक निर्देशक अविनाश ध्यानी  फ़िल्म का स्क्रीनप्ले पहाड़ों में बहने वाली नदी जैसा हैं पहाड़ी नदियों ज़्यादा गहरी नहीं होती लेकिन इसमें बहता पानी तेज होता हैं और  कल कल की मीठी आवाज आती रहती हैं सुमेरु की कहानी भी ऐसी मीठी सी  हैं भँवर प्रताप सिंह के अंदर पिता से दूर होने की इमोशनल फीलिंग का तूफ़ान हैं वह अपने पिता को इन पहाड़ों में आखिरी विदाई देते हुए अपने अधूरे सफर पर ठहर जाता हैं उसके अंदर हिम्मत नहीं है कि वह सावी से अपने प्यार की भावनाओं को कह सके । वह एक कदम भी चल नहीं पा रहा हैं दूसरी तरफ़ बड़े इंडस्ट्रीयल की लड़की सावी बाहर से बहुत मज़बूत हैं अपने पिता और मंगेतर से उसे वह प्यार नहीं मिला हैं जो भँवर के पास क़रीब रहने पर वह महसूस करती हैं । लेकिन सावी ने  तो भँवर से पहले ही वादा किया हैं की अपने प्यार का इज़हार वह नहीं करेगी । सावी को लगता है क़ि बिना भँवर के वह अपनी साँसे नहीं ले पा रही हैं वह अधूरी हैं उसकी दुनिया अधूरी हैं । शुरू में सुमेरु की कहानी नायक की कहानी लग रही थी लेकिन इंटरवल के बाद यह सिर्फ़ सावी मल्होत्रा की कहानी लगने लगती हैं ।  सावी और भँवर प्रताप सिंह की इस प्रेम कहानी का अंत देखने के लिए आपको सिनेमा में जाना पड़ेगा । 
फ़िल्म की कहानी का रूमानी हिस्सा फ़िल्म का संगीत है स्क्रीन पर पहाड़ों पर गिरती बर्फ के पीछे  बैकग्राउंड संगीत आपको एक ऐसी कल्पना की दुनिया में ले जाता हैं  जहां प्यार और एहसास की गहराइयाँ हैं । फ़िल्म का संगीत कहानी के मूड को मैच करता हैं । शान की आवाज़ में गाया गीत “जो तू हैं ” कहानी के साथ घुल जाता हैं 
फ़िल्म में संवाद की बात करे तो अधिकतर दृश्य सावी और भँवर के साथ फिल्माए गए हैं लेकिन सावी के डायलॉग में बहुत ही रोमांटिक पोएट्री हैं जो बात शब्दों से नहीं कही जा सकती । इस एहसास को गाने और पोएट्री से प्रभावशाली तरीके से कहने में निर्देशक अविनाश ध्यानी सफल रहे हैं । 
फ़िल्म में संस्कृति भट्ट ने सावी के किरदार को बहुत प्रभावशाली तरीके से निभाया हैं शुरू में एक अल्हड़ और मुंहफट लड़की से फ़िल्म के अंत में एक  खामोश आँखो से बोलती सावी  के किरदार के  अभिनय  में विविधता हैं । अपने  पिता को खोजने निकले भँवर प्रताप सिंह के अभिनय में भी गहराई हैं  अविनाश ध्यानी ने एक संजीदा किरदार में ड्रामा को हावी नहीं होने देते । उनके अभिनय में सहजता हैं । फ़िल्म का सिनेमेटोग्राफ़ी 
अगर आप एक म्यूज़िकल रूमानी कहानी को खूबसूरत लोकेशन के बैकड्रॉप पर देखना चाहते हैं तो सुमेरु को बड़े पर्दे पर देखना एक परफेक्ट च्वाइस हैं

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