अनोखा डोडो :आइये जानते है!
आपने डोडो की कहानी सुनी है?
मारीशस में पाया जाने वाला डोडो दुनिया के सबसे विशालकाय पक्षियों में से था। एक जमाने में इस द्वीप पर स्तनपायी जानवर नहीं थे। पक्षियों की कई प्रजातियां यहां रहती थीं। डोडो उनमें से एक था। कोई दुश्मन नहीं था। डोडो पक्षी फल, बीज और फलियां खाता था और खूब मोटा हो गया था। बीस किलो तक उसका वजन होता था। दुश्मन थे नहीं तो वह उड़ना भी भूल चुका था और जमीन पर ही घोसला बनाकर अंडे भी दे देता था।
भारत और श्रीलंका से मसाले का कारोबार करने के लिए निकला एक पुर्तगाली जहाज 1504 में पहली बार इस द्वीप में पहुंचा। ताजे मांस के लिए पुर्तगाली इनका शिकार करने लगे। मारीशस मसाले के कारोबार के रास्ते में पड़ता था। कुछ ही दिनों में जहाजियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया। इधर से गुजरने वाले जहाज यहां पर रुकने लगे। बड़े पैमाने पर डोडो का शिकार किया जाने लगा।
स्थिति तब और खराब हुई जब डज लोगों ने अपने कैदियों को निर्वासित करने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल शुरू कर दिया। इसके साथ ही यहां पर सुअर, बंदर जैसे जानवर पहुंचने लगे।
जहाजों में लुके-छिपे चूहे भी यहां बड़ी संख्या में पहुंच गए। लगभग सौ सालों में ही डोडो की समूची आबादी नष्ट हो गई। डोडो पूरी तरह विलुप्त हो गई। उसके फोटोग्राफ नहीं है। न ही कोई नमूना सुरक्षित बचा। पुरानी जानकारी के आधार पर कुछ चित्र बनाए गए हैं। डोडो का नामोनिशान मिट गया। लोग उसे भूल गए। पर अचानक कुछ ऐसा हुआ जिससे लोगों को डोडो की याद आ गई।
कुछ सालों पहले वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि मॉरीशस में पाया जाने वाला एक खास तरह का पेड़ अब नहीं उग रहा है। उस प्रजाति के दरख्तों की संख्या अब केवल 13 ही रह गई है। सभी पेड़ों की उम्र 300 साल के लगभग हो चुकी थी। इन पेड़ों की आयु भी 300 साल के लगभग ही होती है। इसलिए जल्द ही वे 13 पेड़ भी मरने वाले थे।
वर्ष 1600 के बाद से उस प्रजाति के नए पेड़ नहीं उगे हैं। उस समय हुए प्राकृतिक और जैविक परिवर्तनों पर गौर करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि यह वही समय था जब डोडो पक्षी भी विलुप्त होता गया था।
होता दरअसल यह था कि डोडो इस पेड़ के फलों को खाता था। उसके बीजों को वह अपनी बीट के जरिए निकाल देता था।
फलों के बीज पर एक खास तरह की परत चढ़ी रहती थी। डोडो का पाचन तंत्र इस परत को पचा लेता था। इसके चलते उसकी बीट से निकलने वाले बीजों में से पौधे के अंकुर निकल आते थे।
लेकिन, डोडो के समाप्त होने के बाद बीज के ऊपर चढ़ी इस परत को हटाने वाला कोई तंत्र नहीं रहा। इसके चलते उसमें से अंकुर नहीं निकल पाते थे और धीरे-धीरे नए पौधे ही उगना बंद हो गए। इसके चलते उन पेड़ों के भी समाप्त होने का पूरा खतरा पैदा हो गया।
उसी समय इन पेड़ों को बचाने की मुहिम नए सिरे से शुरू हुई।कुछ विशेषज्ञों ने डोडो वाली भूमिका के लिए टर्की मुर्गे का चुनाव किया। इस मुर्गे को इस पेड़ के फलों को खिलाया गया।
इसके बाद बीट में निकले बीजों को रोपा गया तो उनमें अंकुर निकलने लगे। इस तरह से पेड़ों की आबादी को बचाने में विशेषज्ञों को काफी हद तक कामयाबी मिली है।
इस पेड़ को अब डोडो ट्री भी कहा जाता है।
प्रकृति में कुछ भी अकेले नहीं है। सभी का संबंध दूसरे से जुड़ा हुआ है। एक खतम होता है तो दूसरे के अस्तित्व पर भी संकट छा जाता है।
यह सभी घटनाक्रम इंटरनेट पर आधारित जानकारी के आधार पर प्रस्तुत किए गए हैं